आज इस आर्टिकल में हमने स्वर संधि कितने प्रकार के होते हैं? (swar sandhi kitne prakar ke hote hain), स्वर संधि के स्वर संधि के कितने भेद होते हैं? (Swar sandhi ke kitne bhed hote?) के बारे में विस्तार से जानेंगे।
दोस्तों हिंदी भाषा के सही अध्ययन के लिए हिंदी व्याकरण का सही अध्ययन जरूरी होता है। हिंदी व्याकरण के अंतर्गत हिंदी बोलने और लिखने के लिए नियम होते हैं। हिंदी व्याकरण के अंतर्गत संधि एक महत्वपूर्ण पाठ है। संधि पाठ का अध्ययन हिंदी व्याकरण में जरूरी होता है।
संधि के मुख्य रूप से तीन भेद होते हैं जिनमें स्वर संधि, व्यंजन संधि तथा विसर्ग संधि आते हैं। आज इस लेख में हम संधि के 3 भेदों में से पहले भेद स्वर संधि के बारे में जानेंगे। स्वर संधि क्या है? तथा मुख्य रूप से यह जानेंगे कि स्वर संधि के कितने भेद होते हैं? स्वर संधि के सभी भेदों को एक-एक करके उदाहरण सहित समझने का प्रयास करेंगे –
स्वर संधि किसे कहते हैं?
आसान भाषा में स्वर वर्णों के संधि को स्वर संधि कहते हैं। हिंदी भाषा के वर्णों में जब दो स्वर आपस में जुड़ते हैं तब उसे स्वर संधि कहा जाता है। यानी दो स्वरों के मिलने से उसमें जो परिवर्तन आता है स्वर संधि कहलाती है। जैसा कि हम सभी को पता है हिंदी में 11 स्वर वर्ण होते हैं और स्वरों के मिलने को स्वर संधि कहा जाता है।
उदाहरण के लिए विद्या+आलय – विद्यालय । इस उदाहरण में देखा जा सकता है की आ और आ दो स्वरों को मिलाए जाने पर मुख्य शब्द में अंतर देखने को मिलता है। दो आ के मिलने से उनमें से एक आ का लोप हो जाता है।
मुनि+इंद्र – मुनींद्र इस उदाहरण में भी इ और इ दो स्वरों को मिलाए जाने पर ई मिलता है। दो इ मिलकर एक ई में परिवर्तित हुई है।
स्वर संधि के अन्य उदाहरण में
- पर + उपकार = परोपकार
- पुस्तक + आलय = पुस्तकालय। इत्यादि है।
स्वर संधि कितने प्रकार के होते हैं?
मुख्य तौर पर स्वर संधि को पांच भेदों में वर्गीकृत किया गया है स्वर संधि के पांच भेद निम्नलिखित हैं –
- दीर्घ स्वर संधि
- वृद्धि स्वर संधि
- गुण स्वर संधि
- अयादि स्वर संधि
- यण स्वर संधि
स्वर संधि के पांचों भेदों को एक एक करके उदाहरण सहित समझते हैं –
1.दीर्घ स्वर संधि
इसकी परिभाषा में, जब एक ही स्वर की के ह्रस्व और दीर्घ रूप की संधि होती है, तब एक दीर्घ स्वर का निर्माण होता है, एवं इसी प्रकार की संधि को दीर्घ संधि कहा जाता है। यानी किसी स्वर के ह्रस्व तथा दीर्घ रूप की जब संधि होती है, तब वह दीर्घ संधि कहलाती है।
उदाहरण के लिए अ एक स्वर है, जिसका ह्रस्व रूप अ तथा दीर्घ रूप आ है, एवं इन दोनों की संधि होने पर आ प्राप्त होता है। अ + आ = आ ।
- अ + आ = आ
- इ / ई + इ / ई = ई
- उ / ऊ + उ / ऊ = ऊ
ऊपर जैसे दर्शाया गया है वही दीर्घ संधि होती है। दीर्घ संधि के उदाहरण –
- ध्वंस + अवशेष = ध्वंसावशेष
- आग्नेय + अस्त्र = आग्नेयास्त्र
- रवि + इंद्र = रवींद्र
- प्रति + ईक्षित = प्रतीक्षित
- प्रति + इत = प्रतीत
- वधू + उक्ति = वधूक्ति
- सिंधु + ऊर्मि = सिंधूमि
- लघु + उत्तम = लघूत्तम
2. वृद्धि स्वर संधि
परिभाषा में, जब अ , आ के साथ ए , ऐ हो तो ‘ ऐ ‘ बनता है और जब अ , आ के साथ ओ , औ हो तो ‘ औ ‘बनता है। इस प्रकार के संधि वृद्धि संधि कहलाती है। यदि अ आ के बाद ए ऐ आए तो ऐ तथा अ आ के बाद ओ औ आये तो औ हो जाता है।
- अ/आ + ए/ऐ = ऐ
- अ/आ + ओ/औ = औ
ऊपर दिए गए संधि के उदाहरण वृद्धि स्वर संधि हैं। वृद्धि स्वर संधि के उदाहरण
- सदा + एव = सदैव
- वसुधा + एव (ही) = वसुधैव
- विचार + ऐक्य = विचारैक्य
- पुत्र + एषणा = पुत्रैषणा
- परम + ओजस्वी = परमौजस्वी
- अधर + ओष्ठ = अधरोष्ठ
- जल+ ओक = जलौक
- शुद्ध + ओदन = शुद्धोदन
3. गुण स्वर संधि
जब संधि करते समय (अ, आ) के साथ (इ , ई) हो तो ‘ए‘ बनता है, जब (अ ,आ)के साथ (उ , ऊ) हो तो ‘ओ‘ बनता है, जब (अ, आ) के साथ (ऋ) हो तो ‘अर‘ बनता है, यही संधि गुण स्वर संधि कहलाती है। दो अलग-अलग स्थानों से उच्चारित होने वाले स्वरों की संधि होने पर मिलने वाले दो स्वरों से अलग गुण वाला स्वर उत्पन्न होता है और इसे ही गुण स्वर संधि कहते हैं।
- अ / आ + इ / ई = ए
- अ / आ + उ / ऊ = ओ
- अ / आ + ऋ = अर
गुण स्वर संधि के उदाहरण
- वीर + उचित = वीरोचित
- पाठ + उपयोगी = पाठोपयोगी
- महा + इन्द्र = महेन्द्र
- समुद्र + ऊर्मि = समुद्रोर्मि
- मृग + इन्द्र = मृगेन्द्र
- मानव + उचित = मानवोचित
4. अयादि स्वर संधि
संधि करते समय ए , ऐ , ओ , औ के साथ कोई अन्य स्वर हो तो (ए का अय), (ऐ का आय), (ओ का अव), (औ – आव) बन जाता है। यानी जब ए के बाद अन्य स्वर आए तो ‘अय’, ऐ के बाद कोई अन्य स्वर आए तो ‘आय’, ओ के बाद कोई अन्य स्वर आए तो ‘अव’, और औ के बाद कोई अन्य स्वर आए तो ‘आव’ हो जाता हैं।
अयादि संधि के उदाहरण
- पौ + अन : पावन
- गै + अन = गायन
- पौ + अक : पावक
- नै + अक = नायक
- विनै + अक = विनायक
5. यण स्वर संधि
इस संधि में इ, ई के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ य ‘ बन जाता है, जब उ, ऊ के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ व् ‘ बन जाता है , जब ऋ के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ र ‘ बन जाता है, यानी इ ई उ ऊ और ऋ के बाद कोई भिन्न (असवर्ण) स्वर आए तो इ ई का य तथा उ, ऊ का व् एंव ऋ का र हो जाता है। इस प्रकार की संधि यण स्वर संधि कहलाती है।
यण स्वर संधि के उदाहरण
- अभि + अंतर = अभ्यंतर
- अति + अल्प = अत्यल्प
- नि + अस्त = न्यस्त
- मति + अनुसार = मत्यनुसार
- स्वस्ति + अयन = स्वस्त्ययन
- परि + अंत = पर्यंत
- गति + अवरोध = गत्यवरोध
Conclusion
आज की शादी तुम्हें हमने हिंदी व्याकरण के बहुत ही महत्वपूर्ण विषय के बारे में जाना है। इस आर्टिकल में हमने स्वर संधि के कितने भेद होते हैं? स्वर संधि कितने प्रकार के होते हैं? इन सब के बारे में जाना है इस आर्टिकल में मैंने आपको स्वर संधि के कितने भेद होते हैं? इन सब के बारे में उदाहरण सहित बहुत ही आसान भाषा में बताया है मुझे उम्मीद है कि यह साथियों को पढ़कर आपको स्वर संधि की अच्छी जानकारी मिली होगी अगर आपको हमारे आर्टिकल से अच्छी जानकारी मिली है तो आर्टिकल को शेयर जरूर करें और हमारे आर्टिकल के संबंधित कोई सुझाव देना चाहते तो आप हमें कमेंट करके बताएं।
Thank your for sharing such really nice information sir