कारक के कितने भेद होते हैं? | Karak ke kitne bhed hote hain

आज इस लेख में हम हिंदी व्याकरण के कारक के बारे में जानेंगे। कारक हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण भाग है। कारक किसे कहते हैं?  कारक के कितने भेद होते हैं? (Karak ke kitne bhed hote hain) या कारक कितने प्रकार केेे होते हैं? (Karak kitne prakar ke hote hain) समझने का प्रयास करेंगेे।

हिंदी भाषा हमारी मातृभाषा है हम सभी को इस भाषा का सही ज्ञान होना जरूरी है। भारत में हिंदी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। किसी की भाषा का आधार उसका व्याकरण होता है, हिंदी में भी हिंदी व्याकरण आधार है,  हिंदी का सही और गहरा ज्ञान होने के लिए हिंदी व्याकरण की सही जानकारी होनी चाहिए।

कारक किसे कहते है?

कारक की परिभाषा में, संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य का संबंध वाक्य के अन्य शब्दों के साथ पता चलता है शब्दों के वे रूप कारक कहलाते हैं। यदि दूसरे शब्दों में इसे समझने का प्रयास किया जाए तो वे चिन्ह जो किसी वाक्य में लिखे गए शब्दों के बीच संबंध स्थापित करते हैं उन चिन्हों को ही कारक कहा जाता है।

संबंध स्थापित करने वाले चिन्हों के उदाहरण में –

सोहन ने सीता को पानी से भिगो दिया।

ऊपर दिए गए उदाहरण में ने, को, से इनके लिखे होने से वाक्य में लिखे गए दूसरे शब्दों के बीच के संबंध का पता चल रहा है जिससे यह सारे शब्द कारक के अंतर्गत आएंगे।

कारक के कितने भेद होते हैं? (Karak ke kitne bhed hote hain)

कारक के आठ भेद होते हैं, जो कि निम्नलिखित है

  1. कर्ता –    ने
  2. कर्म –    को
  3. करण –   से (द्वारा)
  4. सम्प्रदान – के लिए
  5. आपदान – से
  6. सम्बन्ध – का,की,के
  7. अधिकरण – में, पर
  8. सम्बोंधन – हे, अरे

कारक के इन आठों भेदों को एक-एक करके उदाहरण सहित समझते हैं।

कर्ता कारक

कर्ता कारक – वाक्य में लिखे जिस शब्द से क्रिया को करने का पता चलता है कर्ता कारक कहलाता है। कर्ता का मतलब है जो कुछ काम करता हो, जिसके लिए वाक्य में यदि कोई कुछ काम कर रहा है तो उस करने वाले और उस काम के बीच ने संबंध बताता है। कर्ता हमेशा संज्ञा या सर्वनाम ही होता है क्योंकि जाहिर है कोई कार्य कोई जीव, व्यक्ति / वस्तु ही करेगा। कर्ता का संबंध क्रिया से होता है।

उदाहरण-

  • राम ने पानी पिया।
  • सीता ने गाना गाया।
  • बछड़े ने दूध पिया।
  • करण  ने डांस किया।
  • रवि ने एक फिल्म दिखा।
  • सोनम से उसे मारा।
  • रोहित ने सब संभाल लिया।
  • कविता ने पूजा की।

ऊपर दिए गए सभी उदाहरणों में कुछ काम हो रहा है और उस काम को कोई कर रहा है जो उस काम को कर रहा है वही कर्ता होता है।

कर्ता के साथ ने परसर्ग रहता है। भूतकाल की सकर्मक क्रिया होने पर ने  परसर्ग लगाया जाता है। जबकि भूतकाल की अकर्मक क्रिया के साथ ने परसर्ग नहीं लगता है।

वर्तमान काल और भविष्य काल में ने परसर्ग का प्रयोग नहीं किया जाता है।

  • रवि काम करता है।
  • मोहन स्कूल जा रहा है।

दिए गए दोनों वाक्य में रवि और मोहन कर्ता है और यहां ने का प्रयोग नहीं किया गया है।

कर्म कारक

कर्म कारक – किसी  वाक्य में क्रिया का प्रभाव जिस भी जीव, व्यक्ति या वस्तु पर पड़ रहा है, उसे ही कर्म कारक कहा जाता है। कर्ता द्वारा किए जाने वाले कार्य का प्रभाव जिस पर पड़ता है वह कर्म कारक  कहलाता है।

उदाहरण –

  • रवि ने सोहन को मारा।
  • रोहित को डराया गया।
  • राम ने सीता को पेंसिल दी।
  • मोहन ने कुत्ते को मारा।
  • जानवरों को सताया गया।
  • महेंद्र ने रवि को धोखा दिया।
  • कागजों को जला दिया गया।
  • ऑफिसर को पद से हटा दिया गया।

ऊपर दिए गए वाक्यों के सभी उदाहरणों में एक कार्य हो रहा है जिसका प्रभाव किसी पर पड़ रहा है। क्रिया का प्रभाव जिस पर पड़ रहा है वही कर्म कारक कहलाता है।

कर्म कारक की विभक्ति को होती है। यानी कर्म कारक के साथ को लिखा रहता है परंतु कई बार बिना को के लिखे भी क्रिया का प्रभाव कर्म कारक पर पड़ता है।

  • उन्हें निकाल दिया गया।
  • उन्होंने उन्हें भगा दिया।

करण कारक

करण कारक – किसी वाक्य में लिखें जिन शब्दों से क्रिया को किए जाने के साधन का बोध होता है उसे ही करण कारक कहते हैं, इसका मतलब है जिस वस्तु या साधन का उपयोग करके वाक्य में किए गए क्रिया यानी कार्य को किया गया है वही करण कारक कहलाता है।

उदाहरण –

  • रवि ने मोहन को डंडे से मारा।
  • सोहन ने अपने दोस्त को गाड़ी से पहुंचाया।
  • सोहन ने मोबाइल से फोन किया था।
  • वह सीढ़ी से छत पर पहुंचा।
  • गीता ने माचिस से आग लगाई।
  • सोनू ट्रेन से गया था।
  • शिकारी ने बंदूक से हिरण को मारा।
  • उसने टॉर्च से रोशनी दिखाई।

ऊपर दिए गए सभी उदाहरणों में कर्ता किसी कार्य को किसी वस्तु इत्यादि का साधन के तौर पर इस्तेमाल करके कर रहा है।जिन भी वस्तुओं का इस्तेमाल करके क्रिया को किया जा रहा है वह सारे करण कारक  कहलायेंगे।

 इसका विभक्ति चिन्ह से यानी द्वारा होता है मतलब जिसका इस्तेमाल करके कार्य को किया जा रहा है।

संप्रदान कारक

संप्रदान कारक – वाक्य में जब कर्ता किसी कार्य को किसी के लिए करता है, तब जिसके लिए कर्ता द्वारा उस कार्य को किया जा रहा है वह संप्रदान कारक कहलाता है।

उदाहरण –

  • सीता ने गीता के लिए चाय बनाई।
  • राम मोहन के लिए मिठाई लाया।
  • हलवा राहुल के लिए बनाया गया था।
  • रवि महेंद्र के लिए वहां गया।
  • सोहन ने मोहन के लिए शर्ट खरीदी।
  • उन्होंने अपने बेटे के लिए कार खरीदी।
  • वे सारे रवि के लिए गा रहे थे।

ऊपर दिए गए उदाहरणों में कर्ता द्वारा कार्य किसी और के लिए किया जा रहा है इन क्रियाओं का फल किसी और को मिल रहा करता द्वारा किए गए कार्य का फल जिनको मिल रहा है वे संप्रदान कारक कहलाएंगे।

संप्रदान कारक की विभक्ति चिन्ह के लिए है।

अपादान कारक

अपादान कारक – अपादान कारक की विभक्ति चिन्ह भी से होती है परंतु यह करण से अलग है। वाक्य में संज्ञा के जिस रुप से किसी एक वस्तु के दूसरे वस्तु से अलग होने का बोध होता है वह अपादान कारक कहलाता है। इसका मतलब है कर्ता कुछ काम करके जिससे अलग होता है वह अपादान कारक  कहलाता है। इसके अलावा निकलने, सीखने, डरने, लजाने, तुलना करने के भाव में भी इसका उपयोग किया जाता है।

उदाहरण –

  • आम पेड़ से गिरा।
  • ईट दीवार से गिरी।
  • बाइक से हैंडल टूट गया।
  • फ्रेम से फोटो गिर गया।
  • पेड़ से पत्ता गिर गया।
  • छात्र अध्यापक से सीखते हैं।
  • सूरज पूर्व से निकलता है।
  • दिल्ली आगरा से दूर है।
  • वह रोहन से चालाक है।

ऊपर दिए गए उदाहरणों में किसी चीज के किसी से अलग होने का बोध हो रहा है जिससे यह अपादान कारक हैं।

Must Read

  1. सर्वनाम के प्रकार
  2. विशेषण के प्रकार
  3. संधि के प्रकार

संबंध कारक

संबंध कारक –  वाक्य में लिखे शब्द के जिस रुप से किसी  दो संज्ञा के बीच के संबंध का पता चले वह संबंध कारक  कहलाता है। इससे 2 शब्दों के बीच के संबंध का पता चलता है।

उदाहरण –

  • यह राम की बाइक है।
  • यह सीता की गाय है।
  • यह उनके कपड़े हैं।
  • यह मेरा घर है।
  • वह मेरी दुनिया है।
  • यह हमारे खिलौने हैं।
  • आप मेरे मेहमान हैं।
  • राम मोहन का भाई है।

ऊपर दिए गए सभी उदाहरणों में दो संख्याओं के बीच के संबंध का पता चल रहा है। राम की, सीता की, मेरी, हमारे इत्यादि संबंध कारक हैं।

संबंध कारक की विभक्ति चिन्ह का की के रा रे री इत्यादि है।

अधिकरण कारक

अधिकरण कारक – जब वाक्य में लिखे शब्द के किसी रूप से वाक्य में लिखी क्रिया के आधार का बोध हो तो वह अधिकरण कारक कहलाता है। क्रिया के होने का आधार ही अधिकरण होता है। अधिकरण कारक की विभक्ति चिन्ह में  है।

उदाहरण –

  • मछली पानी में रहती है।
  • चिड़िया आकाश में उड़ती है।
  • राम युद्ध में मारा गया।
  • जब मैं रूम में गया तो कमरे में अंधेरा था।
  • मेले में आइसक्रीम मिलती है।

दिए गया उदाहरणों में कर्ता के द्वारा जिन कामों को किया जा रहा है उन क्रियाओं का आधार दिया गया है यह आधार ही अधिकरण कारक होते हैं। जैसे पहले उदाहरण में मछली कर्ता है, रहना क्रिया है और पानी उस क्रिया का आधार है। इसलिए ‘पानी में’ अधिकरण कारक है।

संबोधन कारक

संबोधन कारक –  वाक्य में लिखे जिस शब्द से किसी व्यक्ति या जीव को बोलने यानी संबोधित करने का भाव व्यक्त होता है वह संबोधन कारक कहलाता है। संबोधन कारक की विभक्ति चिन्ह हे अरे अजीब अहो इत्यादि है इन्हीं से किसी को संबोधित किया जाता है। इसमें !  का चिन्ह लगाया जाता है।

उदाहरण –

  • अजी! सुनो कहां जा रहे हो?
  • अरे! तुम यहां आओ।
  • हे भगवान! इसे ठीक कर दो.
  • अजी सुनते हो!  यहां  आओ।
  • अहो! वहां मत  जाओ।
  • हे गोपाल! क्या तुम मेरा एक काम करोगे?

दिए गए सभी उदाहरणों में किसी को संबोधित करके कुछ बोला जा रहा है, जिन शब्दों का इस्तेमाल संबोधित करने के लिए किया जा रहा है वे संबोधन कारक हैं।

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